आलमगीरी गंज बरेली- मेरा मोहल्ला
मेरा मोहल्ला -पीपल का पेड़
भोलेनाथ का मंदिर, मोईनुद्दीन की डेरी
दीपू की दुकान, क्रिकेट का सामान
टिंकू का वीसीआर, पायल की साइकिल
होली पर मचाते थे जम कर हुड्दंग
त्योहारों का मतलब था अपनों का संग
सर्दियों में जलाते थे लक्कड़
गर्मियों में घूमते थे जैसे फक्कड़
कंपनी गार्डेन की सैर बरेली कॉलेज का मैच
मिलते हुए किसी से घड़ी नहीं देखते थे
जेब कितनी छोटी है कितनी बड़ी नहीं देखते थे
जो कुछ कहता था कोई उसकी बात रख लेते थे
लोग आदमी के मुंह का मान रख लेते थे
मिलते थे लोग बिना किसी agenda
इधर से गुज़र रहे थे सोचा पियें चाय ठंडा
वर्ल्ड कप मास्टर साब की छत पर देखते थे
West Indies वाले मैच रात को ही होते थे
नीलू नोट बुक पर reynold's के पेन से
50 पैसा रन और 2 रुपया wicket रखते थे
दर्जी की दुकान पर जब सब नाप देते थे
दिवाली आने वाली है बच्चे भांप लेते थे
नब्बे साल की कमला नानी
मूंग की दाल के लड्डू बना कर
चमन बाग़ से पैदल चल कर
मेरे घर पर आती थीं
सुबह सवेरे नाना मेरे भजन का राग लगाते थे
गाँव से जब दादी आती थी हम पर मस्ती छाती थी
फिर-----
वक़्त बदला और हम भी बदल गए
शहर बड़े और घर छोटे हो गए
दिल मिले ना मिले लोग गले लगा लेते हैं
जैसी ज़रुरत हो वैसे चेहरे बना लेते हैं
हम फिर रोज़ी रोटी के फेर में खो गए ...
दादा-दादी, नानी- नाना की फ़ोन पर बस खबर आई
लफ्ज़ थम गए और आँख भर आई
जब वापस मोहल्ले में गया तो करें खड़ी थीं
पीपल का पेड़ trim हो गया था
घर की दह्लीज़ें बड़ी और playground slim हो गया था
बरेली में भी अब बच्चे बस playstation खेलते हैं
अपने मोहल्ले को हम बस यादों में देखते हैं
हमारा भी घर फिर colony में गया
कुछ ही मील के फासले पर युग बदल गया
- संदीप शर्मा